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आओ!दीप जलाएँ

आओ!दीप जलाएँ
अंधेरी गलियों में मिलकर,आओ!दीप जलाएँ,
दकियानूसी सोच त्यागकर,दुनिया नई बसाएँ।।
                   आओ!दीप जलाएँ।।

मद-घमंड-ईर्ष्या का पसरा,चारो तरफ अँधेरा,
जन-जन में है स्वार्थ भाव ही,बस है तेरा-मेरा।
लगते दीमक शुचि चिंतन में,इनको मार भगाएँ।।
दकियानूसी सोच त्यागकर,दुनिया नई बसाएँ।।
                        आओ!दीप जलाएँ।।

लूट-पाट-हिंसा का लगता,जगह-जगह पर फेरा,
विश्व समूचा दिखता अब तो,दनुजों का ही डेरा।
नैतिक मूल्यों के विकास का,नूतन ध्वज फहराएँ।।
दकियानूसी सोच त्यागकर,दुनिया नई बसाएँ।।
                      आओ! दीप जलाएँ।।

लेने  का  दुश्चिंतन  तज  कर, देना भी हम सीखें,
मेल-जोल की पनपे संस्कृति, ऐसे  रहना  सीखें।
जले न कोई भवन  दुबारा, जलती आग बुझाएँ।।
दकियानूसी सोच त्यागकर,दुनिया नई बसाएँ।।
                       आओ!दीप जलाएँ

प्रचलन पर-उपकार रहे जो ,बने सहायक जन की,
सबकी उन्नति अपनी उन्नति, रहे  सोच  नित  मन की।
पड़े न आँच राष्ट्र की छवि पर, ऐसा  भाव  जगाएँ।।
दकियानूसी सोच त्याग कर, दुनिया  नई  बसाएँ।।
                   आओ!दीप जलाएँ।।
                  ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                      9919446372

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4 Comments

Abhinav ji

16-Jan-2023 09:41 AM

Very nice 👍

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Renu

16-Jan-2023 08:32 AM

👍👍🌺

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बहुत ही सुंदर सृजन और अभिव्यक्ति एकदम उत्कृष्ठ

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